Janmashtami 2024: इस तरह व्रत करने से जीवन होगा खुशहाल, जानिए मुहूर्त, पूजन विधि

    - Advertisement -
    - Advertisement -

    Janmashtami 2024: जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है, जिसे हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व दिया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण, विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं और उन्होंने मानवता के कल्याण के लिए धरती पर जन्म लिया था। उनका जन्म कंस के अत्याचार से मुक्ति दिलाने और धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। 2024 में जन्माष्टमी का पर्व विशेष रूप से पवित्र और धार्मिक महत्व वाला है। इस लेख में, हम जन्माष्टमी 2024 के मुहूर्त, पूजन विधि, और व्रत के महत्व पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

    जन्माष्टमी 2024 का मुहूर्त

    जन्माष्टमी का पर्व हर वर्ष भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की रात होती है, जिसे ‘मोहरात्रि’ भी कहा जाता है। 2024 में, जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जाएगी।

    मुहूर्त के अनुसार, इस दिन पूजा और व्रत की शुरुआत भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि के प्रारंभ होते ही हो जाती है। इस वर्ष अष्टमी तिथि का प्रारंभ 25 अगस्त को रात 11:50 बजे से हो जाएगा और इसका समापन 26 अगस्त को रात 1:00 बजे तक रहेगा। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का सबसे शुभ समय मध्यरात्रि को माना जाता है, जिसे निशीथ काल कहा जाता है। इस समय के दौरान, भक्तजन भगवान कृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और उनके जन्म का स्वागत करते हैं।

    पूजन विधि

    जन्माष्टमी के दिन की पूजा विधि अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन, भक्तजन पूरे दिन उपवास रखते हैं और मध्यरात्रि के समय भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। यहां जन्माष्टमी की पूजा विधि का विस्तृत विवरण दिया जा रहा है:

    1. मंगल स्नान और संकल्प:
      • जन्माष्टमी की पूजा की शुरुआत सुबह स्नान करके की जाती है। शुद्ध वस्त्र धारण करने के बाद, भक्तजन व्रत और पूजा का संकल्प लेते हैं। यह संकल्प भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा को समर्पित करने का प्रतीक होता है।
    2. मूर्ति स्थापना:
      • पूजा के लिए भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या बाल गोपाल की मूर्ति को स्थापित किया जाता है। इसे पूर्व या उत्तर दिशा की ओर स्थापित करना शुभ माना जाता है। इसके साथ ही, भगवान के झूले को भी सजाया जाता है, जिसमें बालकृष्ण को विराजमान किया जाता है।
    3. शुद्धिकरण:
      • पूजा स्थल का शुद्धिकरण गंगाजल से किया जाता है। इसके बाद, भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति का अभिषेक किया जाता है। अभिषेक के लिए दूध, दही, घी, शहद, और शुद्ध जल का प्रयोग किया जाता है। अभिषेक के बाद भगवान को नए वस्त्र और आभूषण पहनाए जाते हैं।
    4. पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा:
      • भगवान श्रीकृष्ण की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा की जाती है। इसमें भगवान को धूप, दीप, नैवेद्य, फल, फूल आदि अर्पित किए जाते हैं। भक्तजन भगवान को माखन-मिश्री, फल, मिठाई आदि का भोग लगाते हैं, जो उनकी प्रिय वस्तुएं मानी जाती हैं।
    5. कथा और आरती:
      • पूजा के दौरान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की कथा का पाठ किया जाता है, जिसमें भगवान के जन्म और उनके लीलाओं का वर्णन होता है। कथा के बाद भगवान श्रीकृष्ण की आरती की जाती है और भजन-कीर्तन के साथ भगवान की महिमा का गुणगान किया जाता है।
    6. झूलनोत्सव:
      • आरती के बाद बालकृष्ण को झूले में झुलाया जाता है। यह झूलनोत्सव भगवान के बाल रूप का उत्सव होता है, जिसमें भक्तजन झूले को धक्का देकर भगवान का आनंद मनाते हैं।
    7. प्रसाद वितरण:
      • पूजा के अंत में भक्तजन प्रसाद का वितरण करते हैं और उसके बाद अपने व्रत का पारण करते हैं। प्रसाद में माखन-मिश्री, फल, पंजीरी, और अन्य मिठाइयों का वितरण किया जाता है।

    व्रत का महत्व

    जन्माष्टमी का व्रत हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत को रखने से जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। जन्माष्टमी का व्रत भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

    1. धार्मिक महत्व:
      • जन्माष्टमी का व्रत धर्म, आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण के प्रति असीम भक्ति और समर्पण का यह पर्व व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से जागृत करता है। इस व्रत को रखने से भक्तजन भगवान के आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और उनके जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान होता है।
    2. स्वास्थ्य लाभ:
      • जन्माष्टमी का व्रत व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है। इस दिन उपवास रखने से शरीर की शुद्धि होती है और मन की शांति प्राप्त होती है। उपवास से शरीर के अंदर का विषाक्त पदार्थ बाहर निकलता है, जिससे शरीर की ऊर्जा और ताकत में वृद्धि होती है।
    3. संयम और आत्म-नियंत्रण:
      • व्रत व्यक्ति में संयम और आत्म-नियंत्रण की भावना को विकसित करता है। व्रत के दौरान भोजन और अन्य इच्छाओं पर नियंत्रण रखने से व्यक्ति के मन और आत्मा को शुद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत व्यक्ति के भीतर की बुरी आदतों को छोड़ने और नैतिकता का पालन करने की प्रेरणा देता है।
    4. पारिवारिक और सामाजिक महत्व:
      • जन्माष्टमी का व्रत पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को भी मजबूत करता है। इस दिन परिवार के सभी सदस्य एकत्रित होकर पूजा-अर्चना करते हैं, जिससे परिवार में एकता और प्रेम की भावना बढ़ती है। समाज में भी जन्माष्टमी का पर्व लोगों को एक साथ जोड़ता है और आपसी भाईचारे को बढ़ावा देता है।

    जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। 2024 में, यह पर्व 26 अगस्त को मनाया जाएगा, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की पूजा, व्रत और उनके जन्मोत्सव का उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। इस पर्व का धार्मिक, सामाजिक, और आध्यात्मिक महत्व है, जो व्यक्ति को जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

    भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की इस पावन तिथि पर व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का वास होता है। साथ ही, यह पर्व व्यक्ति को संयम, आत्म-नियंत्रण, और नैतिकता का पाठ पढ़ाता है। इसलिए, जन्माष्टमी का व्रत और पूजा सभी भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिससे उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है। Janmashtami 2024

    Also Read :

    ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें या ट्विटर पर फॉलो करें. NewsPost.in पर विस्तार से पढ़ें देश की अन्य ताजा-तरीन खबरें

    - Advertisement -

    Latest news

    - Advertisement -

    Related news

    - Advertisement -