Tuesday, October 14, 2025
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मगरमच्छ जो भगवान का प्रसाद खाकर है जिंदा

मगरमच्छ यूं तो मांसाहारी प्रवृत्ति के होते हैं। लेकिन केरल के मंदिर में रहने वाला एक मगरमच्छ न सिर्फ शाकाहारी है बल्कि मुख्य भोजन के रूप में सिर्फ भगवान के प्रसाद का सेवन करता है।

उत्तरी केरल के कासरगोड जिले में एक छोटा और सौंदर्य से परिपूर्ण गांव है अनंतपुर। यहां पर श्रीहरि विष्णु श्री अनंतपद्यनास्वामी के स्वरूप में विराजित है। यहां की पीठ को तिरुवनंतपुरम स्थित श्रीपद्यनाभस्वामी का मूलस्थान माना जाता है।

बहरहाल एक छोटा सा तालाब श्रीअनंतपद्यनाभस्वामी मंदिर के चारों ओर है तथा एक ओर से मंदिर के भीतर देवदर्शन के लिए जाने के रास्ता है। इसी तालाब के पास स्थित है एक खोह जिसमें रहता है एक मगरमच्छ। यह कोई साधारण मगरमच्छ नहीं है बल्कि यह पूर्ण रूप से देव को समर्पित जीव है।

यहां आने वाले श्रद्धालु उसे बाबिया नाम से पुकारते हैं। बाबिया अपने मिलनसार स्वभाव के कारण लोगों के बीच प्रसिद्ध है। बाबिया अपने इष्ट के प्रति पूर्णत: समर्पित है और प्रतिदिन देव को लगाए गए भोग को वह ग्रहण करता है। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि अपनी मांसाहारी प्रकृति के विपरित बाबिया पूर्णत: शाकाहारी है।

मंदिर के पूजारी बताते है कि हम नहीं जानते कि यह मगरमच्छ यहां कैसे आया। लेकिन यह पिछले 70 साल से मंदिर में रह रहा है। मंदिर के अन्य सेवादार बताते है कि हमारे लिए यह बिल्कुल भी नई बात नहीं है। मंदिर परिसर में मगरमच्छ का घूमना सामान्य है और आज तक बाबिया ने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है।

कुछ लोग ऐसी कथा भी बताते है कि वर्ष 1945 में एक अंग्रेज अफसर की एक अनजान जानवर द्वारा हत्या कर दी गई थी। कारण उस अंग्रेज अफसर ने एक मगरमच्छ को गोली मार दी थी। जो कि उस समय मंदिर में रहता था। उसके बाद से बाबिया यहां रह रहा है।

बाबिया प्रतिदिन रात्रि के अंतिम दर्शन होने के बाद मंदिर परिसर में ही विचरता है और देव के पवित्र गर्भगृह के बाहर ही सो जाता है। सुबह दर्शन की तैयारी होते ही वह पुन: तालाब की ओर रुख कर लेता है।

यह भी दिलचस्प है कि इस कुंड में एक न एक मगरमच्छ सदा रहता ही है। वह कहां से आता है कोई नहीं जानता। एक बुजुर्ग ने बताया कि यह तीसरा मगरमच्छ है, जो उन्होंने देखा है। एक मगरमच्छ की मृत्यु होते ही दूसरा यहां आ जाता है, जबकि आसपास कोई तालाब या नदी ऐसी नहीं है, जहां पर मगरमच्छ पाए जाते हो।

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